hindisamay head


अ+ अ-

कविता

आनेवाला कल

रघुवीर सहाय


मुझे याद नहीं रहता है वह क्षण
जब सहसा एक नई ताकत मिल जाती है
कोई एक छोटा-सा सच पकड़ा जाने से
वह क्षण एक और बड़े सच में खो जाता है
मुझे एक अधिक बडे अनुभव की खोज में छोड़ कर

निश्चय ही जो बडे़ अनुभव को पाए बिना सब जानते हैं
खुश हैं
मैं रोज-रोज थकता जाता हूँ और मुझे कोई इच्छा नहीं
अपने को बदलने की कीमत इस थकान को दे कर चुकाने की।

इसे मेरे पास ही रहने दो
याद यह दिलाएगी कि जब मैं बदलता हूँ
एक बदलती हुई हालत का हिस्सा ही होता हूँ
अद्वितीय अपने में किंतु सर्वसामान्य।

हर थका चेहरा तुम गौर से देखना
उसमें वह छिपा कहीं होगा गया कल
और आनेवाला कल भी वहीं कहीं होगा


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में रघुवीर सहाय की रचनाएँ